- सभ्यता व् संस्कृति का वह स्वरूप जिसकी जानकारी हमें वैदिक साहित्य से प्राप्त होती हो वैदिक सभ्यता एवं संस्कृति कहते है .
- इस सभ्यता व् संस्कृति का निर्माण आर्य जाती के द्वारा किया जाता है .
- आर्य शब्द का शाब्दिक अर्थ – श्रेष्ठ या कुल होता है .
- आर्यो के मूल निवासी स्थान को लेकर इतिहासकारो में मतभेद है . परन्तु फिर भी सर्वमान्य मत मेक्समुलर का मध्य एशिया मन जाता है .
- बल गंगाधर तिलक ने अपनी पुस्तक द आर्कटिक होम और द वेज में आर्यो का मूल निवास स्थान उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश माँ है
- दयानन्द सरस्वती के अनुसार ारो का मूल निवास स्थान तिब्बत प्रदेश था .
- वैदिक सभ्यता व् संस्कृति ग्रामीण लोह युगीन व् पितृ सत्तात्मक सभ्यता थी .
वैदिक सभ्यता व् संस्कृत 1500 ई पु से 600 ई पु |
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ऋग्वेदिक कल 1500 से 1000 ई पु | उत्तर वैदिक कल 1000 ई पु से 600 ई पु |
विस्तार सप्त सेंधव प्रदेश | विस्तार – गंगा यमुना दोआब क्षेत्र |
जाती घुमक्क्ड जाती | स्थायी निवासी |
पशुपालन | लोह धातु |
लाल काळा मृदभांड | उत्तर प्रदेश एटा लाया अतिरंजन खेड़ा |
कृषि | |
चित्रित धूसर मृदभांड ा |
ऋग्वेदिक कल (1500 ई – 1000 ई पु )
1 राजनैतिक स्थिति :- ऋग्वेदिक कल में लोग छोटे -छोटे कबीलो में रहते थे . जिसे जन कहा जाता था .इस कल में कबीलो का पिता होता था जिसे राजा कहा जाता था .
वैदिक कालीन राजा की उपाधि
- जनस्य गोपा
- विशामाता
- गोपति
- जान का उदहारण – भारत जान (राजा सुदास )
- ऋग्वेदिक कालीन राजा के द्वारा अपने परिवार का विभाजन नहीं किया गया जबकि अपने कार्यो का विभाजन किया गया था .
- ऋग्वेदिक कालीन राजा के द्वारा कार्यो के सञ्चालन हेतु राजनैतिक संस्था व् अधिकारी की नियुक्ति की गयी थी
* राजनैतिक संस्थाए
- विदथ- यह आर्यो की सबसे प्राचीन संस्था थी .
- सभा – यह विशिष्ट लोगो की संस्था थी जो राजा को सलाह प्रदान करती थी .
- समिति – यह जान सामान्य लोगो ली संस्था थी .
ऋग्वेदिक में सभा का उल्लेख सात बार व् समिति का उल्लेख ८ बार हुआ है . जबकि विदथ का उल्लेख १२२ बार हुआ था .
* राजनैतिक अधिकारी
- पुरोहित
- सेनानी
- ग्रामणी – इसे राजकर्तार भी खा जाता है . जो आर्यो के लड़ाकू दल का नेता था
2. आर्थिक स्थिति
- ऋग्वेदिक कल का प्रमुख स्यावशय – पशुपालन
- ऋग्वेदिक कल का प्रमुख पशु – गाय
- ऋग्वेद में गाय को गवि माता कहा गया है .
- दूसरा प्रमुख व्यवसाय – कृषि
- प्रमुख फसल – यव / जौ
3. सामाजिक स्थिति
- ऋग्वेदिक कालीन समाज का निर्धारण वर्ण व् जाती से होता था .जौ दोनों ऋग्वेदिक कल में गन पर आधारित थी .
- ऋग्वेदिक काल में समाज का दूसरा प्रमुख आधार विवाह था .
- ऋग्वेदिक काल में विवाह सामान्यतः वर्ण पर आधारित था .परन्तु हमें वर्ण के विपरीत होने वाले विवाह की भी जानकारी प्राप्त होती है.
- अनुलोम विवाह – उच्च वर्ण का लड़का व् निम्न वर्ण की लड़की
- प्रतिलोम विवाह – उच्च वर्ण की लड़की व् निम्न वर्ण का लड़का
- ऋग्वेदिक कालीन लडकियो का वह समूह जौ दीर्घ उम्र तक विवाह नहीं करती थी . ऐसी लडकियो के समूह को अभजु कहा जाता है .
- ऋग्वेदिक काल में बल विवाह सती प्रथा व् पर्दा प्रथा विध्यमान नहीं थी . परन्तु नियोग प्रथा विध्यमान थी .
वियोग प्रथा – वह स्त्री जौ अपने पति की मृत्यु के पश्चात वंस की वृद्धि व् स्वयं की रक्षा हेतु अन्य पुरुष के सतह रह सकती थी .
*ऋग्वेदिक काल के प्रमुख वस्त्र :
- वास– शरीरके निचले भाग के वस्त्र
- अधिवास – शरीर के ऊपरी भाग के वस्त्र
- निति – आंतरिक वस्त्र ]
- उल्क- शोल की तरह ऊपर ओढ़े जाने वाल वस्त्र
- उष्णीस – साफा या पगड़ी
- बाधुय- वधु के वस्त्र
4. धार्मिक स्थिति
धर्म की प्रमुख विशेषताए
- बहु देववाद – ऋग्वेदिक काल क्वे लोग विब्भिन प्रकार की प्राकृतिक शक्तियो की पूजा करते थे.इसे ही बहुदेववाद कहा जाता है * ऋग्वेद में ३३ प्रकार की प्राकर्तिक शक्तियो का वर्ण प्राप्त होता है .
- एकेश्वरवाद :- अवसर विशेष पर किसी एक देवता विशेष की पूजा करना ऐकेशवरवाद कहलाता है .
- विभिन्न देवता –
- इन्द्र – यह मुलत युद्ध का देवता था .जौ बाद में वर्षा के देवता के रूप में परिवर्तित हो गया .ऋग्वेदिक के सर्वाधिक २५० सूक्त इन्द्र को समर्पित है .इन्द्र को पुरन्द्र भी कहा जाता है . इसका प्रमुख शस्त्र वज्र था .
- अग्नि : इसे आहुति का देवता कहते है जिसे ऋग्वेद में २०० सूक्त समर्पित है .
- वरुण : यह आप / जल का देवता था .जिसका ऋग्वेद में ३० बार उल्लेख है .
- सोम – यह आनंद व् उल्लास का देवता था जिससे ऋग्वेद का सम्पूर्ण ९ वा मंडल समर्पित है .
- पूषुन – यह पशुओ का देवता था